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सांस्कृतिक पुनरुत्थान का साक्षी बन रहा भारत : मालिनी अवस्थी

नयी दिल्ली. भारत और अन्य देशों में लोकगीतों को पहचान दिलाने के साथ उनकी लोकप्रियता बनाए रखने के लिए प्रयासरत प्रसिद्ध गायिका मालिनी अवस्थी ने कहा कि लोकगीत अब पुरानी परंपराओं की तरह वापसी कर रहे हैं और भारत सांस्कृतिक पुनरुत्थान का गवाह बन रहा है.

पद्मश्री से सम्मानित मालिनी अवस्थी शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित हैं. वह ब्रज, बुंदेली, अवधी, भोजपुरी और काशिका (वाराणसी में बोली जाने वाली भोजपुरी और हिंदी का मिश्रण) के लोकगीतों के लिए प्रसिद्ध हैं. अवस्थी ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ”मुझे बहुत खुशी है कि जो लोकगीत वर्षों से दबे हुए थे- जिन्हें लोग जानते तो थे लेकिन गाए जाते थे- अब दुनिया भर में सुने जा रहे हैं… लोकगीत हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग हैं और हमारे लोगों की यादों को संजोए हुए हैं. उदाहरण के लिए, अगर आप गांवों में जाएं तो पाएंगे कि हर शादी में कम से कम अलग-अलग तरह के 50 गीत होते हैं जो उसकी रस्मों से जुड़े होते हैं.

अवस्थी ने कहा, ”भारत एक सांस्कृतिक पुनरुत्थान का गवाह बन रहा है और पुरानी परंपराओं को फिर से स्वीकार किया जा रहा है और यह लोकगीतों के लिए भी सच है. प्रसिद्धि, धन, काम – यह सब ठीक है, लेकिन जब आपका उद्देश्य पूरा हो जाता है तो आपको जो संतुष्टि मिलती है वह अलग होती है.” अवस्थी (58) ने ऐसे समय में शुरुआत की थी जब अश्लील गानों का बोलबाला था और खास तौर पर भोजपुरी में. उन्होंने कहा कि भारत की लोक गायिका के रूप में अपनी अलग पहचान बनाने में उन्हें चार दशक लग गए. उन्होंने कहा, ”हमारी भाषा ने हमें बहुत सम्मान दिया है और फिर भी कुछ कलाकारों ने इसे अश्लील बना दिया है. जो लोग भाषा की गहराई को नहीं जानते थे, वे सिफ.र् इन गीतों के आधार पर इसका मूल्यांकन करते थे.

उन्होंने कहा, ”लेकिन मैं जो कर रही थी वह अलग था – मैं खेती को लेकर गीत गा रही थी, बुवाई और कटाई के मौसम से संबंधित गीत गा रही थी, बारिश से संबंधित गीतों, बच्चों द्वारा खेलते समय गाए जाने वाले गीत, बच्चे के जन्म और त्योहारों से संबंधित गीत गा रही थी. इसे बदलने में समय लगा.” अवस्थी ने कहा, ”फिल्मों के लिए गाना किसे पसंद नहीं है? लेकिन गीत अच्छे नहीं हैं इसलिए मैं नहीं गाउंगी, यह कहने की ताकत किसी गायक में बहुत कम ही होती है. अधिकतर कलाकार बहुत ज्यादा नहीं सोचते और उन्हें लगता है, ‘यह सिर्फ एक गीत ही तो है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसे कैसे शूट किया गया है. लेकिन मैंने एक सीमा खींच दी.” उत्तर प्रदेश के कन्नौज में चिकित्सकों के परिवार में पली-बढ़ी अवस्थी ने बताया कि उन्हें शुरू से ही संगीत का शौक था और उनकी मां, जो हालांकि गायिका नहीं थी लेकिन उन्होंने उनकी प्रतिभा को बहुत पहले ही पहचान लिया था.

उन्होंने कहा, ”यह एक वरदान था. उन्होंने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया – मैं पांच या छह साल की थी और उस्ताद राहत अली खान साहब के मार्गदर्शन में शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया.” मालिनी के पिता एक चिकित्सक थे और उनके पास अक्सर भोजपुरी बोलने वाले मरीज आते थे, जिनसे युवा अवस्था में मालिनी ने भोजपुरी भाषा सीखी.

शिवा निषाद

संपादक- शिवा निषाद सरायपाली सिटी न्यूज मेन रोड, चेक पोस्ट, झिलमिला सरायपाली मो. 8871864161, 8319644944

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