मुख्यमंत्री योगी ने सालार मसूद के ‘महिमामंडन’ को लेकर निशाना साधा

बहराइच. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 11वीं शताब्दी के योद्धा- सूफी संत माने जाने वाले सैयद सालार मसूद गाजी के महिमामंडन का मंगलवार को विरोध करते हुए कहा कि पकड़े जाने के बाद ‘विदेशी आक्रमणकारी’ को ऐसी सजा दी गई कि ”इस्लाम के मुताबिक उसे जहन्नुम में जगह मिले”.
महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा के अनावरण और 1,243 करोड़ रुपये की 384 विकास परियोजनाओं के लोकार्पण और शिलान्यास के अवसर पर बहराइच में सभा को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा, “गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का मतलब है सालार मसूद के नाम पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों पर पूर्ण प्रतिबंध.” राजभर समुदाय के प्रतीक महाराजा सुहेलदेव ने 1033 ईस्वी में बहराइच में चित्तौरा झील के तट पर एक युद्ध में गजनवी सेनापति गाजी सैयद सालार मसूद को हराकर मार डाला था.
मुख्यमंत्री ने कहा, ”मैंने बहराइच की धरती पर कहा था कि विदेशी आक्रांताओं का महिमामंडन बंद होना चाहिए और राष्ट्रीय नायकों का सम्मान किया जाना चाहिए. और 1,000 साल पहले साहस और वीरता की ऐसी ही एक कहानी थी, जिसे महाराजा सुहेलदेव ने बहराइच की इसी धरती पर सच कर दिखाया था.” आदित्यनाथ ने कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का निर्देश था कि राष्ट्रीय नायकों का सम्मान किया जाना चाहिए.
मुख्यमंत्री ने कहा, “इतिहास ने भले ही उनके (महाराजा सुहेलदेव) साथ अन्याय किया हो, लेकिन यह डबल इंजन वाली सरकार उनके साथ ऐसा नहीं होने देगी.” योगी की यह टिप्पणी बहराइच और संभल जिला प्रशासन द्वारा सालार मसूद की स्मृति में आयोजित होने वाले वार्षिक मेले के लिए अनुमति देने से इनकार करने पर उठे विवाद की पृष्ठभूमि में आई है.
सालार मसूद तुर्की आक्रमणकारी महमूद गजनवी का भतीजा था और हिंदू संगठन उनके नाम पर आयोजित किए जाने वाले ऐसे कार्यक्रमों का विरोध करते रहे हैं. संगठनों का दावा है कि उसने महमूद की तरह सालार मसूद ने मंदिरों को लूटा और तबाह किया.
चित्तौरा की लड़ाई का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, “भारत को लूटने के लिए अपनी 3 लाख की सेना के साथ गजनी से आगे बढ़े बर्बर विदेशी आक्रमणकारी को रोकने के लिए महाराजा सुहेलदेव ने मथुरा से बहराइच तक प्रतिरोध का नेतृत्व किया और ऐसी बाधाएं खड़ी कीं कि जब दुर्दांत आक्रमणकारी (यहां) पहुंचा, तब तक उसकी आधी सेना पहले ही नष्ट हो चुकी थी.” उन्होंने कहा, “जब वह (मसूद) चित्तौरा नामक स्थान पर पहुंचा और महाराजा सुहेलदेव का सामना कर रहा था, तब महाराजा सुहेलदेव के पास 20,000 से 25,000 वीर सैनिक थे, जबकि सालार मसूद के पास डेढ़ लाख योद्धा थे.”
आदित्यनाथ ने कहा, “लेकिन, इन 20,000 से 25,000 बहादुरों ने विदेशी आक्रमणकारियों को गाजर-मूली की तरह काट डाला और दुष्ट सालार मसूद को जिंदा पकड़ लिया गया और उसको सजा भी ऐसी दी गई जो इस्लाम के अनुसार जहन्नुम में जाने की गारंटी देती है.” विपक्ष पर निशाना साधते हुए आदित्यनाथ ने कहा, “जिन लोगों ने महाराजा सुहेलदेव के साथ युद्ध किया, भारत को विर्धिमयों के हमलों से बचाया, भारत की संस्कृति, धर्म और धरती को बचाया, उन्हें बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा गया.” मुख्यमंत्री ने कहा, ”इस अवसर पर मैं कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य दलों से पूछना चाहता हूं कि उन्होंने क्या किया? ऐसा क्यों है कि महाराजा सुहेलदेव को सम्मान नहीं मिला? महाराजा सुहेलदेव के बाद यह भव्य स्मारक आजादी के बाद क्यों नहीं बनाया जा सका? उनके नाम पर मेडिकल कॉलेज, विश्वविद्यालय क्यों नहीं बनाया गया?”
उन्होंने कहा, “ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें वोट बैंक की चिंता थी. अगर महापुरुषों के नाम का इस्तेमाल नामकरण के लिए किया जाएगा तो तुष्टीकरण की नीति विफल हो जाएगी. और मुस्लिम वोट बैंक के कारण ही उन लोगों ने विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला.” मोहम्मद अली जिन्ना का जिक्र करते हुए आदित्यनाथ ने दावा किया कि जब भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का सम्मान कर रहे थे और गुजरात के केवड़िया में उनकी सबसे बड़ी प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के रूप में स्थापित की गई, तब सपा “देश के विभाजनकारी जिन्ना की प्रशंसा कर रही थी.” उन्होंने कहा, ”विदेशी आक्रांताओं के नाम पर कार्यक्रम आयोजित नहीं किये जायेंगे, महाराजा सुहेलदेव के नाम पर कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे.
मुख्यमंत्री ने कहा, ”बहराइच का मुख्य आयोजन महाराजा सुहेलदेव, बालार्क ऋषि और इस मंडल का मुख्य आयोजन मां पाटेश्वरी के नाम पर होगा, किसी विदेशी आक्रांता के नाम पर नहीं.” आदित्यनाथ ने घोषणा की, “लखनऊ में बिजली पासी के नाम पर एक स्मारक बनाया जाएगा, जैसा कि महाराजा सुहेलदेव के सम्मान में यहां बनाया गया है.” बिजली पासी ने मध्यकालीन काल में उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों पर शासन किया और वे पासी समुदाय की प्रमुख शख्सियत हैं.
मई में बहराइच जिला प्रशासन ने वार्षिक जेठ मेले के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया था, जो परंपरागत रूप से 15 मई से 15 जून तक सालार मसूद की दरगाह पर आयोजित किया जाता था और जिसमें लाखों श्रद्धालु आते थे. तीन मई को प्रशासन ने एक आधिकारिक बयान में पहलगाम हमले और संभल हिंसा जैसी घटनाओं के बाद जनता में व्याप्त गुस्से के माहौल और संशोधित वक्फ अधिनियम को लेकर चिंताओं को इसका कारण बताया.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 17 मई को बहराइच में मेले के आयोजन की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. हालांकि, अपने आदेश में न्यायालय की लखनऊ पीठ ने दरगाह में अनुष्ठानों और अन्य संबंधित नियमित गतिविधियों की अनुमति दी थी. अधिकारियों के अनुसार, मार्च में संभल जिला प्रशासन ने सालार मसूद के नाम पर आयोजित होने वाले तीन दिवसीय मेले की अनुमति नहीं दी थी और कहा था कि “देश को लूटने वाले” व्यक्ति की याद में आयोजित होने वाले कार्यक्रम के लिए अनुमति नहीं दी जाएगी. विपक्षी समाजवादी पार्टी के नेताओं ने इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना की थी.